राष्ट्रीय

सिंधु जल संधि स्थगित होने से क्या होगा?

सुरेश उपाध्याय

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत जवाबी कार्रवाई में जुट गया है। फिलहाल उसने पाकिस्तान के खिलाफ कूटनीतिक कदम उठा लिए हैं। इनमें पाकिस्तानियों का वीजा रद्द करना, वाघा सीमा बंद करना और पाकिस्तानी उच्चायोग में कर्मचारियों की संख्या कम करने के साथ ही सिंधु नदी जल संधि को स्थगित करना भी शामिल है।
पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद भी देश में इस संधि को नकार कर पाकिस्तान की ओर जाने वाला पानी रोकने की मांग की गई थी, ताकि उसे माकूल जवाब दिया जा सके। सरकार ने तब न इस संधि को खारिज किया और न ही स्थगित किया। इस बार सरकार ने फिलहाल इसके अमल पर रोक लगा दी है। यह संधि मूलतः पाकिस्तान के डर की उपज है। भारत विभाजन के बाद से ही उसे इस बात की आशंका सताने लगी थी कि संबंध खराब होने या युद्ध आदि के हालात में भारत उसकी नदियों का पानी रोक सकता है और अगर ऐसा हो गया तो पाकिस्तान भारी मुसीबत में घिर सकता है।
तब विभाजन के कारण पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया था – पूर्वी और पश्चिमी। इसका पूर्वी हिस्सा भारत के पास आया तो पश्चिमी पाकिस्तान के पास। बंटवारे के दौरान ही सिंधु नदी घाटी और यहां मौजूद नहरों का भी बंटवारा किया गया। पाकिस्तान तक पानी के बहाव को बरकरार रखने के लिए 20 दिसंबर 1947 को पूर्वी और पश्चिमी पंजाब के चीफ इंजीनियरों ने एक समझौते पर दस्तखत किए। इसके मुताबिक अगले 10 साल तक भारत के बंटवारे से पहले तय पानी का हिस्सा पाकिस्तान को देते रहने पर सहमति बनी। जब इस करार की अवधि खत्म हुई तो भारत ने पाकिस्तान की ओर जाने वाली दो प्रमुख नहरों का पानी रोक दिया। इससे पाकिस्तान में हालात खराब हो गए। इसके बाद पाकिस्तान और भारत में नदियों के पानी के बंटवारे के लिए लगातार विवाद चलता रहा। अंततः 19 सितंबर 1960 को विश्व बैंक की मध्यस्थता में भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों के पानी के बंटवारे के लिए एक समझौता हुआ, जिसे सिंधु जल संधि के नाम से जाना जाता है। इस पर कराची में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खां ने दस्तखत किए।
इस संधि के मुताबिक, पंजाब से होकर बहने वाली तीनों पूर्वी नदियों- रावी, सतलुज और व्यास के पानी पर भारत को पूरा अधिकार दिया गया। पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चेनाब के 13.50 करोड़ एकड़ फीट पानी पर पाकिस्तान को अधिकार दिया गया। यानी इतना पानी भारत, पाकिस्तान को देता रहेगा। भारत को अपने हिस्से के 20 प्रतिशत पानी का कृषि, घरेलू जरूरतों आदि के लिए इस्तेमाल करने के साथ ही बिजली पैदा करने के लिए इन नदियों पर बांध बनाने की अनुमति भी सिंधु जल संधि में दी गई।
जहां तक मौजूदा हालात का सवाल है भारत, पाकिस्तान को उसके हिस्से का पानी दे रहा है। सरकार के ताजा फैसले से आने वाले दिनों में क्या स्थिति बनती है, यह देखना होगा। जल संसाधन मंत्रालय के मुताबिक, पूर्वी क्षेत्र की तीनों नदियों के पानी का पूरा-पूरा इस्तेमाल करने के लिए भारत लगातार प्रयास कर रहा है। इस मकसद से उसने सतलुज पर भाखड़ा बांध बनाया है। व्यास पर पोंग और पंडोह और रावी पर थीन बांध बनाया है। इसके साथ ही कई संपर्क नहरों का निर्माण किया है। भारत का कहना है कि वह इन पूर्वी नदियों के पानी की एक भी बूंद पाकिस्तान तक जाने से रोकने के लिए लगातार काम कर रहा है। इस सिलसिले में रावी नदी पर शाहपुर कंडी बांध का काम भी जारी है। इससे पंजाब और जम्मू-कश्मीर में 37 हजार हेक्टेयर जमीन की सिंचाई और 206 मेगावॉट बिजली बनाने में मदद मिलेगी। इस बांध का काम पंजाब और जम्मू-कश्मीर के बीच विवाद होने पर 2014 में रोक दिया गया था। अभी पूर्वी नदियों का करीब 20 लाख एकड़ फीट पानी पाकिस्तान जा रहा है। भारत ने इसे हर हाल में रोकने का फैसला किया है।
अब अगर सरकार के ताजा फैसले के मद्देनजर पश्चिमी क्षेत्र की नदियों का पानी भारत रोक देता है तो पाकिस्तान में हाहाकार मच जाएगा। लेकिन इस फैसले पर अमल कैसे होगा। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत अभी अपने हिस्से के पानी का ही पूरा उपयोग नहीं कर पा रहा है तो वह सभी नदियों का पानी कैसे रोक पाएगा। अगर ऐसा करना है तो भारत को बड़े पैमाने पर बांध बनाने होंगे और नहरों का जाल बिछाना होगा। या फिर नहरों के जरिए पंजाब की नदियों के सरप्लस पानी को अन्य नदियों में मिलाना होगा। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस काम में बहुत समय लगेगा और अथाह पैसा चाहिए होगा। इसलिए सरकार के ताजा फैसले का पाकिस्तान पर तत्काल असर होने के आसार कम ही हैं।

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