मौत को गले लगाने से पहले अतुल को करने थे 32 काम, बनाई थी चेकलिस्ट
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एक घंटा, 21 मिनट और 46 सेकेंड का वीडियो बनाने वाला और तीस पन्नों का सुसाइड नोट लिखने वाला अतुल सुभाष अपनी मौत के पहले के आखिरी दो दिनों की पूरी कहानी भी लिख गया. अतुल के कमरे की दिवार पर दो कागज के पन्ने चिपके थे. जिनमें से एक पन्ने पर उसने लिखा है कि मौत से पहले उसे 32 काम करने हैं. ये काम उसने तीन हिस्सों में बांटे थे. आइए आपको बताते हैं अतुल सुभाष की मौत से पहले की ये कहानी.
कमरे की दीवार पर चिपके थे दो पन्ने
बेंगलुरु के डेल्फिनियम रेसिडेंसी अपार्टमेंट की दूसरी मंजिल पर अतुल सुभाष रहा करते थे. वहीं एक कमरे में अतुल की लाश मिली थी. उस कमरे की एक दीवार पर मरने से पहले अतुल ने दो अलग-अलग पन्ने चिपकाए थे. एक पन्ने पर बड़े बड़े अक्षरों में ‘जस्टिस इज़ ड्यू’ लिखा था. जबकि उसके बराबर में चिपके दूसरे पन्ने पर बेहद छोटे छोटे अक्षरों में 32 कामों की एक ऐसी लिस्ट चिपकी थी, जिसे मौत को गले लगाने से पहले अतुल को पूरा करना था. इस चेक लिस्ट के सबसे ऊपर अतुल ने लिखा था ‘फाइनल टास्क बिफोर मुक्ति’.
तीन हिस्सों में बांटे थे जिंदगी के आखिरी 32 टास्क
दरअसल, ये अतुल के फाइनल 32 टास्क थे. इन टास्क को अतुल ने तीन अलग-अलग हिस्सों में बांटा था. पहले हिस्से का नाम उसने ‘बिफोर लास्ट डे’ यानि आखिरी दिन से पहले रखा था. दूसरे हिस्से का नाम ‘लास्ट डे’ रखा था. जबकि तीसरे हिस्से का नाम ‘एग्जिक्यूट लास्ट मूमेंट’ यानि आखिरी पल वाले काम रखा था. यानि इस फाइनल टास्क में अतुल की जिंदगी के आखिरी दो दिनों के सारे कामों की लिस्ट थी. इस फाइनल टास्क के आगे अतुल ने एक कॉलम या खाना बना रखा था. जिसमें वो जो जो काम जैसे-जैसे होता गया. उसके आगे या तो टिक लगाता गया. या डन लिखता गया.
32 में से 8 कामों के आगे लिखा था डन
इन 32 कामों में से पहले 8 कामों के आगे उसने डन लिखा था. जबकि 24 कामों के आगे टिक लगाई थी. जानते हैं अतुल की इस चेक लिस्ट में उसने अपने हिस्से में मौत से ऐन पहले यानि आखिरी काम क्या चुना था? मौत को गले लगाने से पहले आखिरी बार नहाना.
आखिरी दिन पूरे किए थे ये 8 टास्क
अतुल की जिंदगी की आखिरी दो दिनों की चेकलिस्ट की शुरुआत ‘बिफोर लास्ट डे’ से होती है. यानि मौत से एक दिन पहले. यानि 8 दिसंबर. 8 दिसंबर के लिए अतुल ने फाइनल 8 टास्क को चुना था. इस टास्क की शुरुआत होती है पहले टास्क इनिशिएट लास्ट डे से. यानि आखिरी दिन की शुरुआत से. दूसरा काम इम्पॉर्टेंट डॉक्यूमेंट्स को पैक करना था. तीसरा टास्क कानूनी तैयारियों को पूरा करना था. चौथा काम ऑफिस के सभी काम पूरे करना. पांचवा काम सभी कम्यूनिकेशन को इकट्ठा करना था. छठा काम डेटा का बैकअप लेना. सातवां काम छोटे-मोटे कामों को अंजाम देना. आठवां काम पैसों को सेव करना. मौत से पहले के इस आखिरी दिन अतुल ने खुद के लिए जो आठ टास्क चुने थे. वो सभी शायद पूरे हो गए थे. इसलिए इन सभी टास्क के आगे उसने डन लिखा था.
अतुल ने ऐसे की थी लास्ट डे की तैयारी
अतुल ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिन के कामों को दो हिस्सों में बांट दिया था. पहला हिस्सा लास्ट डे के तौर पर, तय टास्क को पूरा करने के लिए और दूसरा हिस्सा आखिरी लम्हों के टास्क को पूरा करने के लिए. लास्ट डे के पहले हिस्से के लिए उसने कुल 10 टास्क खुद के लिए तय किए थे. यानि ये टास्क 8 और 9 दिसंबर की रात के थे. इस आखिरी दिन के टास्क में सभी को पैसे चुकाना. डॉक्यूमेंट्स को स्कैन कर अपलोड करना. इसे अपने मेल से जोड़ना. सुसाइड नोट की एक कॉपी बैकअप के तौर पर अपलोड करना. लैपटॉप, चार्जर, ऑफिस की आईडी, गेट की आईडी. सभी को ऑफिस में जमा करना. खुदकुशी के लिए फांसी का फंदा तैयार करना. अपने फोन से फिंगरप्रिंट और फेस रिकगनिशन को हटाना. छोटे-मोटे कामों का डेटा तैयार करना और सुसाइड नोट वीडियो को अपलोड करना.
सुसाइड नोट वीडियो और ईमेल
अब अतुल की जिंदगी का आखिरी लम्हा करीब आ चुका था. अब अतुल को अपने उन्हीं आखिरी लम्हों के 13 काम करने थे. इन आखिरी लम्हों के लिए जो फाइनल टास्क अतुल ने लिखा, उसकी शुरुआत ही डेस्ट्रॉय आई से होती है. यानि खुद को बर्बाद करना. इसके बाद अतुल सुसाइड नोट वीडियो और मेल को अलग-अलग ग्रुप में पब्लिश करने का काम करता है. इसके बाद वो अपने परिवार को मैसेज भेजता है. परिवार के बाद वकीलों को मैसेज भेजता है. ऑफिस को मेल करता है. अटैचमेंट को चेक करता है. फिर वीडियो को लाइव अपलोड करता है. सुसाइड नोट को उसी के साथ अटैच करता है. साथ ही कोर्ट की कॉपी भी मेल करता है. इसके बाद अतुल कोर्ट को भेजे गए मेल का बैकअप लेता है और उसे सेव करता है. फिर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट को मेल भेजता है. भेजे गए मेल का अटैचमेंट चेक करता है.
पूरे हो चुके थे मुक्ति से पहले के आखिरी 32 काम
अब मुक्ति से पहले के 6 फाइनल टास्क बचे थे. आखिरी लम्हों के इन आखिरी कामों की शुरुआत अतुल कमरे में टेबल पर सुसाइड नोट रखकर करता है. इसके बाद वो कमरे की चाभी फ्रिज पर रखता है. कार और बाइक की चाभी भी उसी फ्रिज पर रखता है. अब उसके सारे काम हो चुके थे. आखिरी के चार काम बचे थे. आखिरी के चार कामों की शुरुआत वो 108 बार शिवा का नाम जपकर करता है. इसके बाद वो कमरे की सारी खिड़किया खोल देता है और दरवाजा बंद करता है अब वो बाथरुम जाता है. और आखिरी बार नहाता है. मुक्ति से पहले के आखिरी 32 काम अब पूरे हो चुके थे.
33 फाइनल टास्क था मौत
इसके बाद वो कमरे में ही पंखे में अटकाए फंदे से झूल जाता है. कायदे से मुक्ति से पहले ये उसका 33 फाइनल टास्क था. लेकिन अपने फाइनल टास्क में अतुल सुभाष ने इस आखिरी टास्क का ना कोई जिक्र किया, ना अपने टास्क में मेंशन किया. ना उसके लिए कोई कॉलम या खाना बनाया. क्योंकि अतुल को भी मालूम था ये वो टास्क था. जिसे करने से पहले ना वो डन लिख सकता था, ना टिक लगा सकता था. और करने के बाद तो ये मुमकिन ही नहीं था. क्योंकि मुर्दे कभी लिखते नहीं है. और इस तरह से मुक्ति से पहले अतुल के फाइनल टास्क कंप्लीट हो चुके थे.
घरवाले पूरा करेंगे एक ख्वाहिश
मौत के बाद अंतिम संस्कार हुआ और अब वही अतुल एक कलश में अस्थियों की शक्ल में बंद है. बेंगलुरु में ही अतुल के परिवार ने अतुल का अंतिम संस्कार किया. अंतिम संस्कार के बाद उसकी अस्थियों को कलश में सहेज कर रख लिया. बाद में वो इस कलश को लेकर बेंगलुरु से अपने घर बिहार में समस्तीपुर पहुंचे. एक सवाल जिसका जवाब हर कोई जानना चाहता था कि क्या अतुल की आखिरी 12 ख्वाहिशों में से इस एक ख्वाहिश को उसके घरवाले पूरा करेंगे. यानि जबतक अतुल को इंसाफ नहीं मिल जाता. क्या तब तक वो उसकी अस्थियों को सहेज कर रखेंगे. तो अतुल के भाई ने इस सवाल का जवाब दे ही दिया. उसने कहा कि जब तक इंसाफ नहीं मिलेगा, वे अतुल की अस्थियां सहेज कर रखेंगे.
क्या अतुल के परिवार को मिलेगा इंसाफ?
यानि फिलहाल तो अतुल की अस्थियां संभाल कर ही रखी जाएंगी. परिवार इंतजार करेगा फैसले का. पर फैसला क्या होगा पता नहीं. पर कहीं अगर फैसला अतुल के हक में ना हुआ यानि उसे इंसाफ ना मिला तो क्या अतुल का परिवार उसकी उस ख्वाहिश को पूरा कर पाएगा? क्या कोई भी परिवार ऐसा करने की हिम्मत कर पाएगा?
जौनपुर पहुंची बेंगलुरु पुलिस
अतुल की मां बेटे की मौत की खबर सुनने के बाद से ही होश में कम बेहोश ज्यादा रह रहीं हैं. बेटे के अंतिम संस्कार के दिन ही वो समस्तीपुर से बेंगलुरु पहुंची थीं. पर अपने बेटे को आखिरी विदाई देने से पहले वो रो-रो कर निढाल हो चुकी थी. अतुल के भाई ने अतुल को खुदकुशी के लिए उकसाने के सिलसिले में चार लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज कराई थी. केस दर्ज करने के बाद बेंगलुरु पुलिस की एक टीम यूपी के जौनपुर के लिए रवाना की गई.
बेंगलुरु पुलिस ले रही है लीगल एक्सपर्ट्स की राय
डीसीपी शिवकुमार ने आजतक से फोन पर बातचीत में कहा कि परिवार ने भले ही सिर्फ चार लोगों के नाम लिखाएं हो. लेकिन केस की जांच और लीगल एक्सपर्ट्स की राय लेने के बाद वो तय करेंगे कि क्या इस मामले में जौनपुर की फैमिली कोर्ट की जज रीता कौशिक और उनके पेशकार माधव के खिलाफ भी केस दर्ज होना चाहिए और क्या उनसे पूछताछ की जानी चाहिए.
घर पर ताला लगाकर भागे अतुल के ससुरालवाले
इधर बेंगलुरु पुलिस की टीम जौनपुर रवाना हुई. उधर, रात के अंधेरे में ही अतुल की पत्नी निकिता का पूरा परिवार घर के दरवाजे पर ताला लगाकर चुपचाप फरार हो गया. यहां तक कि अतुल की सास के भागने की तस्वीरें तो कैमरे में कैद हैं. बाद में अतुल की सास और साला एक होटल के सीसीटीवी कैमरे में भी कैद नजर आए. वैसे घर से भागने से पहले जैसे ही अतुल की मौत की खबर सोशल मीडिया के जरिए पूरे देश में वायरल हुई. मीडिया की टीमें अतुल के ससुराल का पक्ष जानने के लिए जौनपुर में उसके घर के बाहर जमा हो गई थीं. लेकिन परिवार बात करने की बजाय उल्टे मीडिया को ही धमकाने लगा था.
निकिता के परिवार पर कसा कानून का शिकंजा
उन लोगों ने बालकनी से उंगलियां दिखाई और नीचे खड़े मीडिया वालों को हड़काया. ऐसा करने वालों में एक अतुल की सास निशा सिंघानिया और साला अनुराग सिंघानिया था. दिन के उजाले में दोनों ने मीडिया को उंगलियां दिखाईं थीं और रात के अंधेरे में दरवाजे पर ताला जड़ कर रफूचक्कर हो गए. उन्हें पता था कि बेंगलुरु पुलिस कभी भी घर पर दस्तक दे सकती है. और घरवालों को गिरफ्तार कर अपने साथ ले जा सकती है. अब देखना ये है कि बेंगलुरु पुलिस के साथ अतुल के ससुराल वालों की लुका छुपी का खेल कितने दिन चलेगा.