उत्तर प्रदेशराज्‍य

अधिवक्ता यश पाडिया की दलील पर उच्च न्यायलय का बड़ा फैसला

प्राइवेट कम्पनी के विरूद्ध याचिका पोषणीय नही- हाईकोर्ट

प्रयागराज / इलाहाबाद : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 226 में किसी प्राइवेट कम्पनी/संस्था के खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत राज्य माने जाने वाली संस्थाओं के खिलाफ ही अनुच्छेद 226 में याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की जा सकती है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी के खिलाफ मेसर्स मनोज पेट्रोलियम व अन्य की याचिका को पोषणीय नहीं मानते हुये खारिज कर दिया है। साथ ही याची मेसर्स मनोज पेट्रोलियम को कानून के तहत वैकल्पिक अनुतोष प्राप्त करने की छूट दी है। याचिका में नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी द्वारा मेसर्स मनोज पेट्रोलियम कम्पनी के साथ पेट्रोलियम पदार्थों की खरीद व बिकी के लिये हुये करार को भंग करने की वैधता को चुनौती दी गयी थी।

नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी की तरफ से पेश हुये अधिवक्ता यश पाडिया

यश पाडिया ने दलील दी कि नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी, कम्पनी अधिनियम 1956 के तहत निगमित एक कम्पनी है जो कि एक निजी स्वामित्व वाली और नियंत्रित इकाई है, जिसे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा बिकी की फ्रेंचाइजी वितरित करने के लिये अधिकृत किया गया है। परिणाम स्वरूप उक्त उद्देश्य के लिए याचिकाकर्ता मेसर्स मनोज पेट्रोलियम और नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी के बीच दिनांक 06.01.2020 को फ्रेंचाइजी समझौता किया गया है। फेचाइजी समझौता स्पष्ट रूप से और अनिवार्य रूप से एक निजी अनुबन्ध है जिसे सरकारी नियंत्र से अछूते निजी पक्षों द्वारा और उनके बीच निष्पादित किया जाता है।

अधिवक्ता यश पाडिया ने यह भी दलील दी कि नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है। यह कम्पनी एक लाभ कमाने वाला संगठन है और पेट्रोलियम उत्पादों की बिकी का उक्त व्यवसाय किसी जनकल्याण के उद्देश्य से किया जाता है, इसलिये यह केवल याचिकाकर्ता मेसर्स मनोज पेट्रोलियम के बीच निष्पादित समझौते के अनुसरण में कर्तव्यों का निर्वहन और उसके निर्देशों का पालन कर रहा है। इसे कभी भी जनहित में कार्य करने के रूप में नहीं माना जा सकता है।

नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी के अधिवक्ता यश पाडिया ने यह भी तर्क दिया कि मेसर्स मनोज पेट्रोलियम के पास वैकल्पिक व प्रभावी उपाय है और उक्त उपाय का लाभ उठाये बिना उन्होंने याचिका क्षेत्राधिकार के तहत इस न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है जो कानून का मखौल है। फ्रेंचाइज समझौता के खण्ड 20 में शिकायत निवारण स्थापना का प्रावधान है और उसी के खंड 21 में एक मध्यस्थता खंड शामिल है जो पक्षों के बीच समझौते का अभिन्न अंग है।

न्यायालय के समक्ष निर्धारण हेतु यह प्रश्न था कि क्या नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी, भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के दायरे में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रतिपादित और स्पष्ट की गई “राज्य की परिभाषा के अन्तर्गत आती है कि नहीं”?

खण्डपीठ ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि सभी पहलुओं को देखने के पश्चात यह स्पष्ट रूप से स्थापित हो गया है कि मेसर्स मनोज पेट्रोलियम, याचिकाकर्ता तथा प्रतिपक्षी संख्या-3 नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी के बीच सम्बन्ध, दोनों ही निजी संस्थाओं होने के कारण, संविदात्मक प्रकृति के है, जो केवल वाणिज्यिक उददेश्य के लिये पेट्रोलियम तथा डीजल उत्पादों की बिकी के उद्देश्य से एक फ्रेंचाइजी समझौते के उद्देश्य से बनाये गये है। नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी एक निजी कम्पनी है, क्योंकि यह न तो किसी कानून के तहत बनाई गई है, न ही यह वित्तीय या प्रशासनिक रूप से सरकार द्वारा नियंत्रित है।

उक्त मामले की सुनवाई के पश्चात न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ एवं न्यायमूर्ति बी०सी०दीक्षित की खण्डपीठ ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 226 में किसी प्राइवेट कम्पनी के खिलाफ याचिका पोषणीय नहीं है एवं खण्डपीठ ने नायरा एनर्जी लिमिटेड कम्पनी के खिलाफ मेसर्स मनोज पेट्रोलियम व अन्य की याचिका को पोषणीय नहीं मानते हुये खारिज कर दिया।

न्यायालय ने सभी पक्षों की ओर से उपस्थित हुये अधिवक्ताओं के तर्क-वितर्क के दौरान दिखाई गई निपुणता और धैर्य तथा उनके द्वारा किए गए व्यापक एवं सारगर्भित शोध के लिए धन्यवाद देना चाहता है, जिससे न्यायालय को अपने निष्कर्ष पर पहुँचने में सहायता मिली है।

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